सवाल उठता है कि विकास के नाम पर हम जो विध्वंस कर रहे हैं, क्या ये त्रासदी वाकई उसी का परिणाम हैं? अगर ये निर्विवाद सच्चाई है तो विकास की कीमत क्या होनी चाहिए?

पड़ोस में जब इतनी उथल-पुथल मची हो तो भारत भला कैसे निश्चिंत रह सकता है। चीन के साथ जारी संकट के बीच पाकिस्तान में तालिबान का बढ़ता आतंक हमारे लिए दोहरी परेशानी खड़ी कर सकता है।

कुछ मुद्दे हैं जो मोदी और बीजेपी को परेशान कर सकते हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद बेरोजगारी का उच्चतम स्तर अभी भी केन्द्र सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है।

चीन के लिए हासिल ये है कि एक तरफ मौत का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ रहा है, तो दूसरी तरफ आर्थिक विकास दर गिरकर पांच दशकों के न्यूनतम स्तर 2.8 से 3.2 प्रतिशत तक जाती दिख रही है।

बिहार की घटना को देश सबक के तौर पर ले सकता है। शराबबंदी को लागू करना जितना जरूरी है, उससे अधिक जरूरी है इसे बेहतर तरीके से लागू करना।

गुजरात के संदर्भ में आम आदमी पार्टी पर चर्चा तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रासंगिक होगी जो दिल्ली और पंजाब के बाद अब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के राज्य में भी पैर जमाने में कामयाब रही है।

इंडिया फर्स्ट की नीति पर चलता आज का भारत एक ही समय में रूस और अमेरिका जैसे धुर विरोधियों की ऐसी जरूरत है जिससे मुंह मोड़ना इन दोनों महाशक्तियों के लिए भी संभव नहीं है।

अगर भारत को अपने आर्थिक विकास की दर को आगे बढ़ाना है तो उसे नियंत्रित होती जनसंख्या के बीच बुजुर्गों की बढ़ती आबादी का भी ध्यान रखना होगा।

श्रद्धा और आफताब। परिवार, धर्म, समाज की बंदिशों से बेपरवाह, बेपनाह मोहब्बत, नफरत, धोखे और कत्ल की खौफनाक दास्तान। नफरत की पराकाष्ठा ऐसी कि मोहब्बत के ही 35 टुकड़े कर दिए। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस वारदात ने हर उस मां बाप के दिल में खौफ पैदा कर दिया है जिनके घर में बेटियां …