भारत से नजदीकियां बढ़ाने पर दक्षिण अफ्रीका की उम्‍मीदें होंगी पूरी, ब्रिक्स समिट से मिलेगा बड़ा फायदा

भारत की आर्थिक ताकत और दक्षिण अफ्रीका के साथ उसकी दोस्ती ब्रिक्स को उभरती बहुध्रुवीय व्यवस्था के एक स्तंभ के रूप में मजबूत कर सकती है, वो भी ऐसे समय में जब भारत और दक्षिण अफ्रीका के राष्‍ट्राध्‍यक्ष ब्रिक्‍स समिट के लिए जोहान्सबर्ग में मिलेंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो फाइल)

India south africa relation: जैसे-जैसे वैश्विक स्‍तर पर बड़े देशों के बीच खींचातानी बढ़ रही है, भारत की आर्थिक ताकत और दक्षिण अफ्रीका के साथ उसकी दोस्ती ब्रिक्स को उभरती बहुध्रुवीय व्यवस्था के एक स्तंभ के रूप में मजबूत कर सकती है, वो भी ऐसे समय में जब भारत और दक्षिण अफ्रीका के राष्‍ट्राध्‍यक्ष ब्रिक्‍स समिट के लिए जोहान्सबर्ग में मिलेंगे.

यूक्रेन को लेकर रूस और नाटो शक्तियों के बीच बिगड़ते संबंधों के बीच विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का समूह अधिक महत्वपूर्ण हो गया है. इस अस्थिर समय में, भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच एक अनोखा रिश्ता है जो ब्रिक्स को वैश्विक स्थिरता और समान विकास को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है.

2022 में, भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $18bn (लगभग R342bn) को पार कर गया और 2000 से 2022 तक दक्षिण अफ्रीका भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 35वां सबसे बड़ा स्रोत था. उपमहाद्वीप में अपने साझेदार के साथ गहरे संबंधों में निवेश करने से दक्षिण अफ्रीका को ही फायदा हो सकता है, जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है क्योंकि दुनिया का ज्यादातर हिस्सा आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है.

फोर्ब्स इंडिया के मुताबिक, इस साल भारत की जीडीपी 3.75 ट्रिलियन डॉलर (करीब 71 ट्रिलियन डॉलर) के आंकड़े को छू गई और 10वें स्थान से आगे बढ़ते हुए इसे दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया गया. फिलहाल, भारत की जीडीपी केवल अमेरिका, चीन और जर्मनी से कम है.

इस तरह के आंकड़े ब्रिक्स की प्रासंगिकता को खारिज करने की सनकपूर्ण प्रवृत्ति को चुनौती देते हैं. यदि आर्थिक उपाय सामने और केंद्र में होता तो ऐसा होने की संभावना कम होती. उदाहरण के लिए, हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में 1982 के बाद से क्रय शक्ति समानता के आधार पर वैश्विक जीडीपी पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है, जिससे जी7 देशों की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट और ब्रिक्स देशों की हिस्सेदारी में समान रूप से लगातार वृद्धि का पता चलता है.

रिपोर्ट में दिखाया गया है कि इस माप के आधार पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में जी7 देशों की हिस्सेदारी 1982 में 50% से घटकर 2022 में 30% हो गई, जबकि ब्रिक्स देशों की हिस्सेदारी 1982 में 10% से बढ़कर 2022 में 31% हो गई.

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